हाथ की रेखाओं के निरंतर अध्ययन उन पर किए गए अनगिनत प्रयोगों के परिणामों का सावधानीपूर्वक परीक्षण करने के यह ज्ञात होता है कि निश्चित स्थानों पर बनी हुई रेखाएं सदैव तथा निरंतर अपने से संबंधित वस्तुओं के गुण दोषों का विवेचल करने में विशेष रूप से प्रभावी होती हैं। जब भी किसी घटना का विचार जातक के मस्तिष्क में आता है तो उसके प्रभाव के फलस्वरूप घटनाएं व्यक्ति के मस्तिष्क पर अपनी अमिट छाप छोड़ देती हैं। अतः इन परिणामों के अच्छे या बुरे प्रभाव के अनुसार हाथ में कुछ रेखाएं उभर आती हैं या कुछ पहले की रेखाएं लुप्त हो जाती हैं अथवा टूट जाती हैं। कई हाथों का निरीक्षण करने से यह पता लगाना संभव हो सका है कि जातक के विभिन्न मनोभावों का प्रभाव उसके हाथ में कहां-कहां दिखाई देता है तथा इनके अच्छे या बुरे प्रभाव को व्यक्त करने वाली रेखाएं किस प्रकार की हैं। रेखाएं नवजात शिशुओं और वयस्कों दोनों के हाथों में होती हैं। अनेक लोगों का यह मानना है कि मानव शरीर की प्रत्येक बनावट का कोई-न-कोई विशिष्ट प्रयोजन हैं इस वधारण पर पूरा विश्वास करना आवश्यक हैं प्रभु ने मनुष्य का निर्माण बिना सोचे-विचारे नहीं किया। उसका निर्माण करते समय कोई निश्चित उद्देश्य तथा प्रयोजन अवश्य रहता है। इसी प्रकार प्रभु ने हाथ में रेखाओं को बनाकर निष्फल एवं निरर्थक श्रम नहीं किया। हथेली पर रेखाओं का महत्त्वपूर्ण प्रयोजन होता है। ऐसी आस्था रखने से शंका का निवारण स्वतः ही हो जाता है।
वर्ग, श्रेणी, पर्वत-प्रकार और पूरे जीवन का प्राकृतिक लेखा-जोखा रखेन वोल इस अंग की ओर आकर्षित होने लगा है। हाथ में रेखाएं बनने के प्रयोजन का हस्तरेखा शास्त्र में पूर्ण अध्ययन कर लिया गया है। प्रत्येक जातक की जीवनचर्या स्वाभाविक रूप से नियमित होती है और यह उस समय तक निर्बाध गति से चलती रहती है जब तक ऐसा कुछ न घटे, जो उस मार्ग को बदल दे या जातक उसमें सुधार के लिए स्वयं तत्पर न हो जाए। दसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की दिशा और सीमाओं की सामान्य रूपरेखा व्यक्ति के जन्म से ही बन जाती है। जातक अपने जीवन में इसी सामान्य दिशा का अनुसरण स्वाभाविक रूप से करता रहता हैउसका स्वास्थ्य भी उसके प्रारूपिक गुणों के अनुकूल होगा और जो परिणाम होना चाहिए उसकी रूपरेखा उसके हाथ में रेखाओं द्वारा लिखी होती है तथा इसी प्रकार उसके स्वाभाविक जीवन की दिशा का रेखाचित्र बनता है। यदि उसकी मानसिक या शारीरिक प्रवृत्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता और कोई दुर्घटना घटित नहीं होती, तो वह इसी दिशा का निरंतर अनुसरण करता _रहेगा। इस जानकारी के आधार पर जातक के जीवन की स्वाभाविक दशा का सत्यकथन किया जा सकता है। रेखाओं द्वारा जीवन में घटित हो चुकी अथवा घटने वाली घटनाओं की जानकारी मिलती है। क्योंकि उनका कोई न कोई चिह्न प्रमाण स्वरूप हथेली पर बना रह जाता है।
इन तथ्यों के संयोग से हाथ में रेखाओं के इन कार्यों को समझा जा सकता है। यह बात वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चकी है कि जातक की मानसिक सोच में परिवर्तन के साथ ही रेखाओं में भी परिवर्तन होता है। रेखाओं में परिवर्तन जातक के स्वभाव एवं उसकी विशेषताओं में बदलाव लाने वाली घटनाओं के कारण होता है। रेखाएं स्वास्थ्य एवं शरीर-गठन में परिवर्तन के अनुरूप भी बदलती रहती हैं। ये मानसिक शक्ति को व्यक्त करती हैं और जीवन की उन घटनाओं को दर्शाती हैं, जो जातक के मन मस्तिष्क पर अपनी गहरी छाप छोडती हैं। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि हाथ में बनी रेखाएं जातक के मन का प्रत्यक्ष प्रतिबिम्ब होती हैं तथा उसकी मनोदशा के अनुसार उभरती हैं, नियन्त्रित होती हैं या फिर उनमें परिवर्तन होता हैइस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि अतीत की घटनाओं को दर्शाने में रेखाओं की अपरिमित भूमिका रहती है। जिन घटनाओं का मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ा है, वे अतीत का हिस्सा बन जातीहैं। इन तथ्यों के साथ भली-भांति परिचय स्थापित करने के बाद रेखाओं की व्याख्या करके सर्वथा सत्य भविष्यकथन किया जा सकता है। वैज्ञानिक प्रयोगों से यह सच्चाई सामने आई है कि मनुष्य के अंदर दोहरी चेतना या मनोवृत्ति होती है। चेतना का एक भाग हमारे पार्थिव अस्तित्व में क्रियाशील रहता है तथा हमें उन वस्तुओं का बोध कराता है, जिन्हें हम देख या स्पर्श कर सकते हैं। इसका दूसरा भाग हमें अदृश्य, भौतिक अस्तित्वहीन और अवर्णनीय वस्तुओं का आध्यात्मिक बोध कराता है। यथार्थ या भौतिक स्वरूप न होने के कारण आध्यात्मिक चेतना का अस्तित्व शीघ्र प्रकाश में नहीं आ सकता। पहली चेतना पांसारिक मनोवृत्ति की सीमाओं को प्रकट करती है, जिससे केवल उन्हीं बातों का बोध होता है. जो घटित हो चुकी या वर्तमान में घट रही हैं। हमारी चेतना का यह पक्ष भविष्य में नहीं देख सकता।हमारी आंतरिक चेतना या आध्यात्मिक मनोवृत्ति ऐसी किन्हीं सीमाओं से बंधी हई नहीं है। इसे भूतकाल में घटित और भविष्य में होने वाली संभावित घटनाओं का ज्ञान रहता है। इसमें सांसारिक बातों से ऊपर उठकर भविष्य में झांकने की सामर्थ्य होती है ।
हाथ में रेखाओं का बनना, मिट जाना या उनमें परिवर्तन होना जब मनोदशा पर निर्भर करता है, तो इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि रेखाएं न केवल सांसारिक मनोवत्ति द्वारा, बल्कि आत्मनिष्ठ या आध्यात्मिक चेतना खरा भी प्रभावित होती है। इस तरह एक चेतना . भत और वर्तमान से संबंध रखती है तथा दसरी भविष्य से। इन दोनों चेतनाओं से हमारा अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों ही संचालित और िनयन्त्रितह ोताह इ न्हींके प, भावस अ तीत,वर्तमानए वं भविष्य का सजन हाथ की रेखाओं के रूप में हो जाता है। हाथ में अंकित रेखाएं भविष्य का प्रतिबम्ब होती हैं, इस कथन की सम्पष्टि उक्त धारणा से भी हो जाती है पुरानी रेखाओं के लुप्त होने और नई रेखाओं के बनने की प्रवृत्ति पायी जाती है। गहन अध्ययन और विश्लेषण के उपरांत इस प्रवृत्ति को देखा गया है। मनोवृत्ति के दो रूप या प्रकार होने के कथन की पुष्टि उन अनेकानेक वैज्ञानिक शोधकार्यों द्वारा भी हो चुकी है, जो इस दिशा इस दिशा में निरंतर किए गए हैंअनेक महान विद्वानों एवं वैज्ञानिकों द्वारा प्राप्त निष्कर्षों पर अब शंका करने की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती। यहां प्रत्येक मामले का विस्तृत वर्णन करने के बजाय केवल उन तथ्यों का उल्लेख करना समीचीन वेगा जो प्रमाणित हो चुके हैं। अनेक महान विद्वानों एवं वैज्ञानिकों द्वारा प्राप्त निष्कर्षों पर अब शंका करने की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती। यहां प्रत्येक मामले का विस्तृत वर्णन करने के बजाय केवल उन तथ्यों का उल्लेख करना समीचीन वेगा जो प्रमाणित हो चुके हैं ; क्योंकि इस तरह से उक्त धारणा के समर्थन में उनका उपयोग किया जा सकेगा। संक्षेप में, हमने एक निश्चित आधार से आरंभ किया है, जिसका स्रोत उक्त दो कथन हैं, जिनके आधार पर रेखाओं का सुजन, नियंत्रण और उनमें परिवर्तन किया जाता है; क्योंकि मनोदशा को अतीत, वर्तमान ओर भविष्य का पूरा ज्ञान रहता है।
रेखाओं के माध्यम से यह सत्य स्वयं ही प्रकट हो जाता है। रेखाएं संबंधित जातक के जीवन का ऐसा चित्रांकन करती हैं, जिसको कोई भी आसानी से पढ़ और समझ सकता है। ऐसा दावा नहीं किया जा सकता कि किसी जीवन के रेखाचित्र को बदला नहीं जा सकता; क्योंकि अनेक बार परिस्थितियां हमारी जीवन योजना में परिवर्तन ला सकती हैं। ये परिस्थितियां मख्यतः सामाजिक संगथ्य के क्षीण होने के कारण उत्पन्न होती हैं । घटित हो चुके या होने वाले परिवर्तनों को हाथ परब ननेवालीन ईर खाएंप कटक रनेल गतीह यम ख्य रेखाओं को काटती हैं, मिटाती हैं और जैसी भी स्थिति हो. उन्हें अशक्त या सशक्त बनाती हैं। मनोदशा में परिवर्तन के साथ-साथ ही हाथ की रेखाएं सशक्त या मंद पड़ने लगती हैं अथवा विलप्त हो जाती हैं। तंत्रिका शक्ति के समाप्त हो जाने पर संबंधित जातक की रेखाओं का मिट जाना यही सिद्ध करता है कि मस्तिष्क ही रेखाओं को बनाता और नियन्त्रित करता है। सभी प्रकार के पक्षाधार में रेखाएं लप्त नहीं हो जातीं। कछ मामलों में पक्षाघात होने के बावजूद जीवन चलता रहता है। ऐसे मामलों में रेखाएं केवल मंद पड़ ज हैं. किंत मिटती नहीं हैं। मस्तिष्क जैसे- जैसे क्षीण होता है, रेखाएं भी उसी अनुपात में क्षीण होने लगती हैं ।
और अंततः मिट जाती हैं। मन -मस्तिष्क के मिट जाने या समाप्त हो जाने पर ऐसा कुछ भी नहीं बचता, जो रेखाओं को शक्ति दे सके और उन्हें पहले जैसा बनाये रख सके। मस्तिष्क और मनोवत्ति दोनों के रहने पर ही रेखाओं पर नियंत्रण संभव होता है। पक्षाघात में शरीर की गति समाप्त होने पर भी, यदि मस्तिष्क संतुलित एवं क्रियाशील रहे, तो रेखाएं बनी रहती हैं। यही कारण है कि विक्षिप्तता या पागलपन में मस्तिष्कक कि शिकाएंज वितर हतीह त थाम निसिकस तुलन समाप्त हो जाने पर भी हम संबंधित जातकों के हाथों में प्रबल रेखाएं देख पाते हैं। मनोवृत्ति के कुंठित होने या मिट जाने के प्रत्येक उदाहरण में, हाथ में बनी रेखाएं लुप्त हो जाती हैं। वथों में बनी मुख्य रेखाएं जीवन की स्वाभाविक दिशा को बताती हैं। नई-नई बनने वाली रेखाएं जातक के हृदय में उत्पन्न होने वाले नये मनोभावों और विचारों को व्यक्त करती हैं। मनुष्य का मस्तिष्क वास्तव में एक ऐसी पहेली है, जिसके साथ बात करने मात्र से यह नहीं जाना जा सकता कि उसके मन में क्या है। उसके मस्तिष्क में झांककर उसके विचारों तक नहीं पहुंचा जा सकता। वैज्ञानिक कई वर्षों से उस कुंजी की खोज में लगे हैं, जो मानव-मन के रहस्यों को खोल सके। वे भिन्न-भिन्न दिशाओं में कार्य करते रहे हैं, किंतु उन सबका लक्ष्य एक ही रहा है। इससे किसी भी मन के गप्त रहस्य खोले सबका लक्ष्य एक रहा है । कहने का अर्थ यह है कि हाथ सर्वाधिक विश्वसनीयति का प्रभाव, दुर्घटना, परिवर्तन की बलवती इच्छा या स्वास्कुंजी है। पाखंडी व्यक्ति चाहे अपना चेहरा बदल ले, किंतु हाथ की रेखाओं को नहीं बदल सकता। जातक की कृत्रिम नहीं, अपितु वास्तविक मनोवृत्ति का दर्शन हाथ की रेखाओं में होता है। हाथ को देखकर ही जातक के मानसिक गुणों एवं संभावित परिणामों को भी समझा जा सकता है ।
यह बात सदैव ध्यान में रखनी चाहिए कि प्रत्येक हाथ एक जैसी घटनाओं का संकेत नहीं देता। इस तथ्य के प्रकाश में दोनों हाथों का परीक्षण किए बिना हाथ केवल विरासत में मिली हुई या स्वाभाविक प्रवृत्तियों अथवा मनोवृत्ति पर गहरा प्रभाव डालने वाली घटनाओं का संकेत देता है। मन पर सबसे गहरी छाप छोड़ने वाली घटना का पता लगाये बिना और हाथ का परीक्षण किए बिना, भविष्यकथन नहीं किया जा सकता। परंतु हाथ का परक्षीण किए बिना ही प्रत्येक जातक को प्रेम-विवाह, धन-दौलत या किसी भी घटनाक्रम के बारे में सब कुछ बताने का दावा करने वाला हस्तरेखाविद् या तो अज्ञानी होगा या फिर धोखेबाज होगा, जो वह जानते हुई भी झूठा बोल रहा है। हाथ द्वारा व्यक्ति की जाने वाली जीवन से संबंधित घटनाओं को हाथ का परीक्षण किये बिना नहीं बताया जा सकता।रेखाओं से पढ़कर अर्थ निकालना हस्तरेखा शास्त्र का एक सूक्ष्म और संवेदनशील भाग है। यही कारण है कि इसमें पूर्ण प्रवीणता और पूरे ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है। नौसिखिए हस्तरेखा शास्त्रियों के साथ सबसे बड़ा खतरा यही रहता है कि वे शीघ्र ही, पर्याप्त परीक्षण तथा प्रयोग किए बिना ही, सबकुछ जानने का दावा करने लगते हैं। इसको उनका दुस्साहस ही समझा जाना चाहिए। हस्तरेखा विज्ञान के संबंध में निपुणता प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि सर्वप्रथम मुख्य रेखाओं के अध्ययन में प्रवीणता लाए और इसके बाद ही क्रमश : आकस्मिक रेखाओं एवं रेखासमूहों को पढ़ने-समझने का प्रयास किया जाना चाहिएइस प्रकार धैर्य एवं सावधानीपूर्वक आगे बढ़ने से ही इस शास्त्र के व्यावहारिक पहल का ज्ञान प्राप्त होगा तथा निपुणता में वृद्धि होगी। प्रत्येक हस्तरेखाविद् अपनी मानसिक प्रवृत्ति के अनुसार हस्तपरीक्षण करता है। कुछ हस्तरेखाविद् प्रत्येक हाथ को उसके व्यावसायिक पक्ष, कुछ उसके कलात्मक पक्ष और अन्य उसके वैज्ञानिक अथवा स्वास्थ्य संबंधी पक्षों को ध्यान में रखते हुए हस्तपरीक्षण करते हैं। इस प्रकार हस्तरेखाविद् कुछ दिशाओं, अर्थात् विषयों में विशेषज्ञ बन जाते हैं। र विषय-विस्तार और प्रवीणता की वृद्धि से ही उनके द्वारा महत्त्वपूर्ण भविष्यकथन किए जा सकते हैं। आरंभ में, किसी भी व्यक्ति के जीवन की दो या तीन प्रमुख घटनाओं का पता लगाकर संतुष्ट होना उचित रहेगा। धीरे-धीरे अनुभव के आधार पर घटनाओं का अध्ययन किया जाना चाहिए। इस कार्यविधि के अपनाने से हस्तरेखा विज्ञान सरल हो जाता है ।